18-10-71  ओम शान्ति  अव्यक्त बापदादा  मधुबन

दीपमाला - चेतन्य दीपकों की माला की यादगार

आज बापदादा क्या देख रहे हैं? आप दीपकों की माला देखने के लिए आए हैं। जो दीपमाला का यादगार दिवस लोग मनाते हैं लेकिन बापदादा चैतन्य दीपकों की माला को देख रहे हैं। आप सभी भी जब दीपमाला के दिन जगे हुए दीपकों को देखते हो तो देखते हुए यह खुशी होती है कि हमारी ही यादगार मना रहे हैं? जैसे जगा हुआ दीपक प्यारा लगता है, वैसे अपनी यादगार को देख स्मृति आने से आप सभी भी विश्व के बाप और सारे विश्व के आत्माओं को प्यारे लगते हो। तो आज यादगार रूप को प्रत्यक्ष रूप में देखने आए हैं। माला में एक दाना नहीं होता है, अनेकों की माला बनती है। अगर एक दीपक अलग जगा हुआ हो तो उसको दीपकों की माला नहीं कहेंगे। तो ऐसे ही अनेक दीपक जगे हुए, माला के रूप में दिखाई देते हैं। तो हरेक अपने को इस दीपमाला के बीच पिरोया हुआ, जगा हुआ दीपक समझते हो? वा आप लोग भी अनेक जगे हुए दीपकों की माला को देखते हुए हर्षित होते हो? आज दीपमाला के दिन आप सभी ने दीपावली मनाई? आज विशेष रूप से दीपावली मनाई? यूं तो सदैव जगे हुए दीपक हो, लेकिन जब विशेष यादगार का दिवस होता है तो विशेष आत्माओं को क्या करना चाहिए? विशेष आत्माएं जो विशेष रूप से निमित्त बनते हैं, उन्हों को विशेष सर्विस क्या करनी है? विशेष आत्माओं को तो अन्य से विशेष कार्य करना है ना। क्योंकि जो अन्य आत्माएं भी कर सकती हैं और कर रही हैं वह किया तो बाकी फर्क क्या हुआ? विशेष आत्माओं को विशेष कार्य करना है। बापदादा विशेष दिनों पर विशेष रूप से बच्चों की और भक्तों की तीनों ही रूप से सेवा करते हैं। विशेष आत्माओं को खास अपने यादगार के दिन साक्षात्कारमूर्त बन, साक्षात् बापदादा समान आत्माओं के प्रति अपनी कल्याण की भावना से, अपने रूहानी स्नेह के स्वरूप से, अपने सूक्ष्म शक्तियों द्वारा आत्माओं में बल भरना चाहिए। जैसे अव्यक्त रूप में बापदादा चारों ओर बच्चों की सेवा करते हैं। वह समझते हैं कि बापदादा ने मेरे से मुलाकात की, मेरी याद का रेस्पान्स दिया वा मेरी याद का प्रत्यक्ष फल मैंने अनुभव किया अथवा भक्त भी अनुभव करते हैं कि हमारे प्यार वा भावना का फल भगवान् ने पूरा किया, यह अनुभव प्रैक्टिकल रूप में होता रहता है।

ऐसे विशेष आत्माओं को अपने अव्यक्त स्थिति में, अपनी रूहानी लाइट और माइट की स्थिति द्वारा लाइट-हाउस और माइट-हाउस बन एक स्थान पर रहते हुए भी चारों ओर अलौकिक रूहानी सर्विस की भावना और वृत्ति द्वारा सर्विस करनी चाहिए। इसको कहते हैं बेहद की सर्विस। ऐसे अनुभव वा महसूस होना चाहिए कि मेरी प्रजा वा भक्त आज विशेष रूप से यादगार के दिन मुझ विशेष आत्मा को याद कर रहे हैं। अल्पकाल के ऋद्धि-सिद्धि वाले एक स्थान पर रहते हुए अपने भक्तों को अपने रूप का प्रत्यक्ष साक्षात्कार करा सकते हैं, तो क्या विशेष आत्माएं अपने लाइट और माइट द्वारा भक्तों को वा प्रजा को अपनी सेवा द्वारा अनुभव नहीं करा सकते हैं? तो जब ऐसे विशेष यादगार के दिन आते हैं तो विशेष आत्माओं को ऐसी विशेष सर्विस पर अनुभव करना चाहिए। ऐसी सर्विस की? अच्छा, यह रही सर्विस। और दीपावली के दिन अपने प्रति विशेष अटेन्शन रहा? आज के दिन अपने आत्मा के संस्कारों में सदा के लिए परिवर्तन लाने का विशेष अटेन्शन दिया? जब यादगार रूप में आज का दिन पुराने खाते खत्म करने की रीति रूप में चलता आ रहा है, वह अवश्य प्रैक्टिकल रूप में आप आत्माओं ने किया है तब तो यादगार चलता आया है। तो आज के दिन अपने पुराने संस्कारों का ज़रा भी रहा हुआ खाता खत्म किया? खत्म करने के पहले अपने खाते को चेक किया जाता है, रिजल्ट निकाली जाती है। ऐसे आप सभी ने अपना पोतामेल चेक किया? क्या चेक करना है? आज के दिन तक जो भी पुरूषार्थ चला उसकी रिजल्ट अब तक किन बातों में और किस परसेन्टेज में सफलतामूर्त बने? पहले अपने मन्सा संकल्पों को, पोतामेल को चेक करो कि - ‘‘अब तक सम्पूर्ण श्रेष्ठ संकल्पों के पुरूषार्थ में कहाँ तक सफलता आई है? व्यर्थ संकल्पों वा विकल्पों के ऊपर कहाँ तक विजयी बने हैं और वाणी द्वारा कहाँ तक आत्माओं को बाप का परिचय दे सकते, कितनी आत्माओं को बाप के स्नेही वा सहयोगी बना सकते हैं? वाचा में कहाँ तक रूहानियत वा अलौकिकता वा आकर्षण आई है? ऐसे ही कर्मणा द्वारा सदा न्यारे और प्यारे, अलौकिक, असाधारण कर्म कहाँ तक कर सकते हैं? कर्मों में कहाँ तक कर्मयोगी का, योगयुक्त, युक्तियुक्त, स्नेहयुक्त रूप लाया है? अपने संस्कारों और स्वरूपों में अर्थात् सूरत में कहाँ तक बाप समान आकर्षण रूप, स्नेही रूप, सहयोगी रूप बने?’’ ऐसे अपना पोतामेल चेक करने से अब तक जो कमी वा कमज़ोरी रह गई है उसको समाप्त कर नया खाता शुरू कर सकेंगे। ऐसा अपना पोतामेल चेक करो।

इसको कहते हैं दीपावली मनाना अथवा अपने को सम्पूर्ण बनाने का दृढ़ संकल्प करना ही मनाना है। तो ऐसे दीपावली मनाई है कि सिर्फ मिलन मनाया? मिलन मनाने का यादगार माला के रूप में है लेकिन दृढ़ संकल्पों का यादगार दीपक के ज्योति रूप का है। तो दोनों रूप से मनाया? नये वस्त्र पहने? आत्मा को नया चोला किस आधार से मिलता है? संस्कारों के आधार से मिलता है ना। आत्मा के जैसे संस्कार होते हैं उस प्रमाण ही चोला तैयार होता है। तो नया चोला वा नये वस्त्र कौनसे पहनेंगे? आत्मा में नये युग के संस्कार वा नये युग के स्थापक बाप जैसे सम्पूर्ण संस्कारों को धारण करना-यही नये वस्त्र पहनना है। शरीर में नये वस्त्र भले कितने भी पहनो लेकिन आज की पुरानी दुनिया की नई वस्तु भी नई दुनिया के आगे पुरानी है क्योंकि जड़जड़ीभूत अवस्था को प्राप्त हो चुके हैं। इसलिए नये वस्त्र पहनो तो भी नये नहीं कहेंगे। सतोप्रधान दुनिया में ही सब-कुछ नया है। तमोप्रधान दुनिया की चीज़ें सभी पुरानी हैं। असार हैं। तो उनको नया कहेंगे क्या? तो नया वस्त्र अर्थात् अपनी आत्मा के नये संस्कार, श्रेष्ठ संस्कार धारण करना है। और क्या करेंगे? जब नये संस्कार धारण कर लिए हैं तो पोतामेल रखने से पोताई हो जायेगी ना। तो पोतामेल रखना - यही पोताई अर्थात् सफाई, स्वच्छता है। जैसे पोताई करते हैं तो जो भी गन्दगी व कीटाणु होते हैं वह स्वत: ही खत्म हो जाते हैं। तो जब ऐसा पोतामेल चेक करेंगे तो जो भी कमजोरी होगी वह स्वत: ही खत्म हो जायेगी। एक-दो में अपने मधुर बोल से लेन-देन क्या करेंगे? जैसे दीपावली पर एक-दो से खर्चा लेते हैं ना। आप लोग एक-दो में कौनसी खर्ची देंगे। आपके पास कौनसी चीज़ है जो एक दो को खर्चा देंगे? (स्नेह की खर्चा) स्नेही तो एक-दो के सदा के लिए हो, कि आज के दिन खास स्नेही बनेंगे? स्नेही तो हो और इसी स्नेह की निशानी, एक-दो के समीपता की निशानी दीपमाला कहा जाता है। विशेष दिनों पर विशेष खर्चा कौनसी देनी है? जो अब तक अपने पुरूषार्थ द्वारा सहज सफलता प्राप्त हुई हो वा अनुभव हुआ हो, ऐसा अपने अनुभव का ज्ञान-रत्न, जिस द्वारा प्रैक्टिकल अनुभवी बन अनुभवी बना सकते हो, ऐसा रत्न एक-दो को खर्चा के रूप में विशेष रूप से देना चाहिए। समझा? बाप के खज़ाने को अपने अनुभव द्वारा जो अपना बनाया ऐसा अपना बनाया हुआ ज्ञान-रत्न एक दो को देना चाहिए, जिससे वह आत्मा भी इससे सहज़ अनुभवी बन जाये। यह है खर्चा। तो एक- दो को ऐसी खर्चा देनी चाहिए जो सदा के लिए याद रूप बन जाए। जब ऐसा रत्न किसको देंगे तो सदा के लिए उस आत्मा को बाप के साथ आपके दिये हुए रत्न की याद ज़रूर रहेगी। तो किसको सदा के लिए सम्पन्न करने वाली खर्चा देनी चाहिए। ऐसी दीपावली मनाओ और ऐसे ही श्रेष्ठ आत्मा बन अन्य आत्माओं की श्रेष्ठ सेवा करो।

आज के दिन सर्व आत्माएं धन के प्यासी हैं। तो ऐसी प्यासी आत्माओं को ऐसा रूहानी धन दो जिससे कभी भी आत्मा को धन मांगने की आवश्यकता ही न रहे। धन कौन मांगते हैं? भिखारी। आज के दिन आत्मा भिखारी बनती है। रॉयल भिखारी कहो। कितने भी करोड़पति हों, लेकिन आज के दिन भिखारी बनते हैं। ऐसी भिखारी आत्मा को भिखारीपन से छुड़ाओ, यह है बेहद की सेवा। दाता के बच्चे हो ना। तो दाता के बच्चे, वरदाता के बच्चे, अपने वरदान की शक्ति से, ज्ञान-दान की शक्ति से भिखारियों को मालामाल बनाओ। आज के दिन इन भिखारी आत्माओं के ऊपर विधाता और वरदाता के बच्चों को तरस पड़ना चाहिए। जिन आत्माओं को ऐसा तरस पड़ता है, उन्हों को ही माया और विश्व की ऐसी आत्माएं नमस्कार करती हैं। इसलिए अब तक भी दीपक जगाते हैं। जब लाइट जलाते हैं तो नमस्कार ज़रूर करते हैं। तो ऐसी ज्योति जगी हुई आत्माओं की यादगार अभी तक भी कायम है। बुझे हुए दीपक को नमस्कार नहीं करते। तो सदा जागती ज्योति बनो। ऐसी आत्माओं को बापदादा भी नमस्ते करते हैं। अच्छा।